परिवर्तन
यह उन दिनों की बात है जब हम कॉलेज में पढ़ा करते थे। हमारे दोस्तों...
यह उन दिनों की बात है जब हम कॉलेज में पढ़ा करते थे। हमारे दोस्तों...
जिम्मेदारियों ने धर दबोचा है कुछ इस तरह, की हास्य पर भी आंसू निकल आते...
महानगर “ वह चहलकदमी करते हुए कभी बालकनी में जाती, कभी गैलरी में तो कभी...
“तुम्हारे जैसी मैं भी” कितना वक़्त लगा मुझे, तुम्हारे जैसा होने में… अब तो मुस्कुरा...
खुद को स्वीकार करना ही अध्यात्म का आखरी और पहला पड़ाव है। हम अगर खुद...