“तुझ में नयापन”
वह रेशमी कुर्ता जो बहुत पसंद था मुझे, वक्त के साथ-साथ नापसंद हो गया… अलमारी...
“तुम्हारे जैसी मैं भी” कितना वक़्त लगा मुझे, तुम्हारे जैसा होने में… अब तो मुस्कुरा...
शब्दों का मायाजाल है संसार, जिससे बनती है जीत हार, धागे यह मोह के ना...
तुम दिन व दिन बड़े होते गए मेरे अंदर फैलती गई जड़े तुम्हारी खिला दिए...
हुई ऐसी तलब तुम्हारी, की धड़कनें थमने सी लगी… कभी घबराई, कभी बेचैनी बढ़ने लगी…...
यह जो महफ़िल सजी है, लगी है भीड़… खुशी में ठहाके लगाने वालों की बस्ती...