प्रेम का इंद्रजाल
प्रिय….. कितनी बार चाहा कि तुम्हें, ना चाहूं। पर, कैसे करूं जाहिर कि कितना चाहा...
प्रिय….. कितनी बार चाहा कि तुम्हें, ना चाहूं। पर, कैसे करूं जाहिर कि कितना चाहा...
वह धड़क रहा था मेरी धड़कनों में वह ले रहा था सांसें मेरी सांसों के...
जी करता है… अंतरात्मा के कठघरे में कर दूं खड़ा तुझे पूछूं अनेक सवाल और...
जल की अविरल धारा हैं हम प्यार से सारा जहां सीचेंगे… चट्टानों से गिरा कर...
एक समाज ये न जाने कितनी हस्ती थी रहते हैं हम जहां वह शरीफों की...
एक निर्वस्त्र औरत दुबकी है कोने में, आंखें भी उसकी असमर्थ है रोने में,, अचानक...
वह क्षण, वह पल जब मैं हताशा के हिमालय पर खड़ा था… काश की मां!...
ना मैं पाषाण ना ही पत्थर की मूर्ति हूं मेरे अंदर की भावनाएं भी उछाल...
एक लड़की अल्हड़ सी, अदाएं भी मासूम… मंडराती है भंवरे सी कलियों को चूम-चूम नहीं...
धरा की पुत्री थी वह धरा की ही तरफ सहनशील, क्षमाशील…. मैं हूं एक आम...