कविता
चांद पा लेने की चाह
ना मैं पाषाण ना ही पत्थर की मूर्ति हूं मेरे अंदर की भावनाएं भी उछाल मारती हैं पर... चांद पा...
भोली-अल्हड़ मस्तानी सी वह
एक लड़की अल्हड़ सी, अदाएं भी मासूम... मंडराती है भंवरे सी कलियों को चूम-चूम नहीं जानती है कली वह ताजातरीन...
मैं धरा पुत्री नहीं
धरा की पुत्री थी वह धरा की ही तरफ सहनशील, क्षमाशील.... मैं हूं एक आम लड़की..... कैसे बन सकती हूं...
वो बदहाल आया है
वो निकलता है हर सुबह सज धज कर... पर वापस निढाल आता है। सोचकर जाता है कि लेकर आएगा...
मुझे कुछ कहना है
कुछ कहना चाहती हूं तुमसे कुछ नहीं, बहुत कुछ.... पर एक तुम हो, जो सुनना ही नहीं चाहते.., तुम्हारे पास...
सपने में बुलाते हो मुझे…!
मैं होती हूं नींद के आगोश में, और तुम चुपके से आ जाते हो... जाने कैसे बिना आहट के मेरे,...
पीर कही ना जाए
आंखों के समंदर में जो है, दर्द सी मछलियां... मची है खलबली कि अब है आतुर बाहर आने को..... कांटों...
इंद्रधनुषी उम्र
ये सतरंगी उम्र... जब दुनिया होती है रंगीन... दिखता है चारों तरफ इंद्रधनुष ही इंद्रधनुष गुदगुदा जाता है हवा का...