खुदा का अक्स
समंदर की तरह असंख्य प्यार की मोती समेटे… ऊपर से सख्त और अंदर से मोम...
समंदर की तरह असंख्य प्यार की मोती समेटे… ऊपर से सख्त और अंदर से मोम...
मैं सोचती थी, मां संवेदनहीन है…. नहीं समझती, दोस्तों के साथ होने वाली मस्ती! है...
आज यह कैसी आंधी चली है, कुछ टहनियां झूम रही हैं हवा के साथ.. तो...
३ दिसंबर, २०२२ यूं तो बेटियों को घर से बाहर जाने की इजाजत नहीं होती...
पूरा घर सो जाता है जब मैं बिस्तर पर जाती हूं सुबह सपनों में डूबा...
मेरे नाम से जोड़कर, अपना नाम गर ऊंचा होता है तेरा कद… तो भूलना मत…...
जीवन की संध्या बेला में गर छूट जाए हम सफर… पत्थरों और कांटों से...
निर्मोही! नीरो की मां ओ निर्मोही नीरो की मां कहती थी तू… सुहागन मरूंगी मैं...