प्रेम का इंद्रजाल
प्रिय..... कितनी बार चाहा कि तुम्हें, ना चाहूं। पर, कैसे करूं जाहिर कि कितना चाहा है मैंने.. समझाती हूं भूल...
प्रिय..... कितनी बार चाहा कि तुम्हें, ना चाहूं। पर, कैसे करूं जाहिर कि कितना चाहा है मैंने.. समझाती हूं भूल...
आंखों के समंदर में जो है, दर्द सी मछलियां... मची है खलबली कि अब है आतुर बाहर आने को..... कांटों...