मुक्त होने की चाह…
तमाम बंधन के जकड़ को तोड़, मुक्त होना चाहती हूं..... नहीं चाहती - कोई समाज, कोई परिवार ना चाहती हूं...
तमाम बंधन के जकड़ को तोड़, मुक्त होना चाहती हूं..... नहीं चाहती - कोई समाज, कोई परिवार ना चाहती हूं...
छह साल की देलाक्षी दक्षा की परिकल्पना एक रेस्तरां में एक टेबल को घेरे हुए चार कुर्सियां बहुत उदास थीं।...