शादी शब्द सुनते ही मन मस्तिष्क में सजे-संवरे और नाचते-गाते खुशनुमा चेहरे बरबस सामने आ जाते हैं। पर शादी खत्म होते ही हर चेहरा थका-हारा उदास या फिर विदाई पर रोता हुआ दिखता है। यह विरोधाभास आखिर शादी में क्यों है?
अपनी बेटी की शादी में उसके मां-बाप नख से शिख तक उपयोग में आने वाली हर चीज अपनी हैसियत के हिसाब से देते हैं। फर्नीचर, बर्तन, कपड़े, सेनेटरी पैड आदि तमाम चीजें। कभी-कभी किसी कारण बस कुछ चीजें लड़की के मां-बाप नहीं दे पाते। फिर शुरू होता है असली…..
हमारे एक परिचित किसी कारण बस अपनी बेटी को पलंग नहीं दे पाए। अब नई दुल्हन को अपने ससुराल में रोज अलग-अलग कमरे में बारी-बारी से सुलाया जाता। उसकी जेठानियां अपना बेड एक-एक दिन के लिए उसे दे रही थीं। जिससे नई दुल्हन का सोने का कमरा रोज बदल रहा था। यह एहसान था या उनकी नीच बुद्धि का प्रमाण यह मैं नहीं जानती।
पर इस घटनाक्रम से बहुत सारे सवाल मेरे दिलो-दिमाग में कौंध रहा था। मैं होती तो क्या करती या उस दुल्हन को क्या करना चाहिए था? जैसे, अगर दुल्हन को पलंग नहीं दिया गया तो वह कहां सोएगी?
ये है समस्या…
और ये रहा समाधान…
जमीन पर…! पर जमीन भी तो नहीं दिया, कायदे से होना यह चाहिए कि पहले लड़की के पिता जमीन खरीदे उस पर घर बनाए फिर अपनी बेटी विदा करे। अगर जेठानी उसे 10 दिन के लिए घर आया हुआ मेहमान ही समझ लेती तो यह घटनाक्रम शायद नहीं होता। पर जेठानी ने उसे अपना हिस्सेदार समझा तो फिर नई दुल्हन को उसका अधिकार ही दे देती। किसी की मानसिकता की हद को कोई नहीं जान सकता।